Sunday, October 4, 2015

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केला है दुनिया का सबसे बड़ा डॉक्टर, केले के पास हर बीमारी का इलाज- Health Benefits of Banana

केला_banana


Health Benefits of Banana :
 कभी सोचा भी नही होगा कि आखिर केला खाने वाले बन्दर लम्बी लम्बी छलाँगें कैसे लगा लेते हैं। हमने कभी सोचा भी नही होगा कि आखिर ताकत बन्दर में होती है या केले के अंदर। हमने कभी सोचा भी नही होगा कि केला आखिर बंदरों का सबसे पसंदीदा भोजन क्यों है। कभी कभी आप यह भी देखते होंगे कि कुछ लोग बंदरों को ढूंढ ढूंढ कर केले खिलते हैं लेकिन खुद केले के गुणों से अंजान रहते है। हम अक्सर यह भी देखते हैं की कुछ लोग गैस, अपच, कब्ज होने पर डॉक्टर के पास जाकर हजारों रुपये खर्च कर देते हैं लेकिन सबसे सस्ती दवा केले के पास जाने की सोच ही नहीं पाते। आइये पढ़ते हैं केला खाने से क्या क्या फायदे होते हैं और किन किस बीमारियों से बचा जा सकता है।
 
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केला: इलाज से रोकथाम अधिक अच्छा

सबसे पहले हमें यह जानना चाहिए कि बीमारियों के इलाज से बीमारियों का रोकथाम अधिक अच्छा है। हमें चाहिए की बीमारियां हमारे शरीर में लगने ही ना पाएं। अगर हम केले को अपनी भोजन में नियमित रूप से शामिल कर लें तो सभी बीमारियों से बचा जा सकता है।

बीमारियां केवल दो ही कारणों से होती हैं।

1. शरीर में खून की कमी
2. पेट में गैस, अपच, कब्ज


ध्यान दीजिये, अगर हमारे शरीर में खून की कमी है तो पेट में गैस और कब्ज की समस्या जरूर होती है और अगर पेट में गैस और कब्ज की समस्या है तो शरीर में खून की कमी होने लगती है। केला खून में हीमोग्लोबिन बढ़ाने का सबसे बढ़िया श्रोत है।नियमित रूप से केले का सेवन करते रहने पर पेट में गैस और कब्ज की समस्या से छुटकारा मिलता है। ध्यान दीजिये, शरीर की सभी बीमारियां पेट से ही शुरू होती हैं। चाहे फेफड़े और सांस की बीमारी हों, चाहे दिल और दिमाग की बीमारी हों, चाहे किडनी और आहारनाल की बीमारी हों और चाहे हड्डियों और गठिया की बीमारी हों। पेट में कब्ज और गैस से शरीर में खून बनना कम हो जाता है और हमारे खून में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इसका नतीजा यह होता है कि हमारी साँसों, फेफड़ों, ह्रदय, किडनी आदि में कमी आनी शुरू हो जाती है। इन अंगों के ढीले पड़ने से और सही ढंग से काम ना करने से हमें धीरे धीरे डायबिटीज या कैंसर की बीमारी होनी शुरू हो जाती है। इसके बाद ही टेंशन, तनाव, रक्तचाप आदि की समस्या शुरू होती है और हम डॉक्टरों के पास भागते रहते हैं।

याद रखिये, पक्के केले के सेवन से अधिक फायदे होते हैं। केला जितना अधिक पका होगा आपके खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा उतनी अधिक बढ़ाएगा। कच्चे या अधपके खेले के सेवन से भी फायदा होता है लेकिन इन्हें खाने से पेट में गैस और कब्ज में आराम मिलता है। कच्चे केले की सब्जी भी खायी जा सकती है। याद रखिये अगली बार आपको गैस और कब्ज की शिकायत हो तो गैस की दवा खाने के बजाय चार पांच केले जरूर खाएं। इससे भूख तो शांत होगी ही, आपके शरीर में ब्लड बनेगा और पेट की गैस और कब्ज से छुटकारा मिलेगा। यह भी याद रखें, यह मत सोचिये कि केवल एक दो केले खाने से आप हमेशा के लिए स्वस्थ हो जाएंगे, नियमित रूप से या हफ्ते में तीन बार केले का सेवन जरूर करें।

याद रखिये, अगर आपका पेट सही है, खाना सही ढंग से पच रहा है, गैस और कब्ज की समस्या नहीं है तो आपके शरीर में खून की मात्रा सामान्य बनी रहेगी। अगर आपके शरीर में खून की मात्रा सामान्य रहेगी तो खून में उपस्थित हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन को आपके शरीर की हर सेल में बराबर मात्रा में पहुंचाते रहेंगे और आपके फेफड़े स्वस्थ बने रहेंगे रहेंगे। फेफड़ों के स्वस्थ रहने से आप सांस की बीमारियों से दूर रहेंगे। शरीर में खून की मात्रा सामान्य रहेगी तो आपके ह्रदय और किडनी जैसे अंग भी सही ढंग से काम करते रहेंगे और खून में पाए जाने वाले अवशिष्ट पदार्थों को फ़िल्टर करते रहेंगे शरीर में खून की मात्रा सामान्य रहेगी तो आपकी सेल और हड्डियों को कैल्शियम, सोडियम, पोटैशियम और आयरन बराबर मात्रा में मिलता रहेगा।

यह सब केवल केले को नियमित रूप से आहार में शामिल करने से हो सकता है। याद रखिये केला सिर्फ बंदरों का भोजन नहीं है बल्कि हमारे लिए भी कुदरत का वरदान है। केला ना सिर्फ सस्ता होता है बल्कि यह गुणों की खान होता है। केला अमीर भी खा सकते हैं और गरीब भी इसलिए केला खाइए और सभी बीमारियों को दूर भगाइए।

याद रखिये कुछ लोग हमारी बातों से असहमत होकर कह सकते हैं कि केला खाने से डायबिटीज हो सकता है, या डायबिटीज वालों को केला खाने से नुकसान हो सकता है। बता दें कि डायबिटीज बीमारी पेट में लम्बे समय तक गैस और कब्ज की समस्या रहने के बाद होती है और इस बीमारी में लीवर के बगल में पाया जाने वाला अंग पैंक्रियाज काम करना बंद कर देता है। अगर नियमित रूप से केले का सेवन किया जाए तो ना तो पेट में गैस और कब्ज होगी और ना ही डायबिटीज जैसे जानलेवा बीमारी होगी।
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Thursday, September 17, 2015

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वोडका के 10 अजीब लेकिन कमाल के उपयोग

नशा करने के अलावा भी वोडका के कई स्‍वास्‍थ्‍य लाभ हैं, बालों के लिए यह बेहतरीन शैंपू है और दर्द से भी निजात दिलाता है।



1. वोडका के फायदे

वोडका को एल्‍कोहल की श्रेणी में रखा जाता है, इसे महिलाओं का ड्रिंक कहा जाता है। लेकिन शायद यह आपको नहीं पता है कि वोडका पीने के कई स्‍वास्‍थ लाभ हैं, इसके अलावा नियमित दिनचर्या में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। वोडका में विटामिन और मिनरल पाए जाते हैं। विटामिन बी, फास्‍फोरस, पोटैशियम और सोडियम आदि वोडका में होते हैं। वोडका से वजन कम होता है क्‍योंकि उसमें कैलोरी की मात्रा कम होती है। यह दिल की बीमारियों के लिए फायदेमंद है।


2. बालों के लिए

वोडका बालों के लिए बहुत फायदेमंद है, इसे आप शैंपू की तरह प्रयोग कर सकते हैं। वोडका की कुछ बूंदे शैंपू में डालकर आप इसका प्रयोग करें। वोडका को बालों में लगाने से बालों की समस्‍यायें दूर होती हैं। यह बालों में मौजूद रूसी को हटाता है, और इसके प्रयोग से बालों का विकास अच्‍छे से होता है। बालों को घना और खूबसूरत बनाने के लिए वोडका लगायें।

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3. माउथवॉश बनायें

वोडका को बहुत अच्‍छे माउथवाश के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है। एक कप वोदका को दालचीनी के 9 चम्‍मच के साथ मिलाकर एक पेस्‍ट बना लीजिए, इसे दो सप्‍ताह तक किसी बरतन में रखिये, ध्‍यान रखिये कि उसमें हवा न जाये। उसके बाद इसे छान लीजिए और गरम पानी में मिलाकर अपने मुंह की सफाई कीजिए, इससे मुंह साफ हो जायेगा। लेकिन इसे निगलें नहीं।



4. बैंडेज हटाने के लिए

चोट की जगह पर लगे बैंडेज को हटाने में बहुत दर्द होता है, कई बार तो इसका दर्द असहनीय हो जाता है। लेकिन क्‍या आपको पता है कि यदि बैंडेज को हटाने से पहले उसपर वोडका की कुछ बूंदे डाल दी जायें तो बिलकुल भी दर्द नहीं होगा और बैंडेज आसानी से बाहर भी आ जायेगा।

5. कान दर्द के लिये


कान में दर्द होने पर वोडका का प्रयोग कीजिए। जिस कान में दर्द हो रहा हो उसमें वोडका की कुछ बूंदे डालकर कुछ 5 मिनट के लिए छोड़ दीजिए, उसके बाद इसे साफ कर लीजिए। कान का दर्द ठीक हो जायेगा, यह कान में दर्द के लिए जिम्‍मेदार बैक्‍टीरिया को समाप्‍त कर देता है।

6. त्‍वचा को बनायें मुलायम

वोडका त्‍वचा को मुलायम बनाकर उसकी रंगत निखारता है। त्‍वचा की रंगत निखारने के लिए यह बहुत ही अच्‍छा प्राकृतिक उपाय है। कॉटन में वोडका की कुछ बूंदों को डालकर इसे धीरे-धीरे त्‍वचा पर मलने से त्‍वचा में निखार आता है।

7. दर्द होने पर

दर्द में राहत भी दिलाता है वोडका। यदि आपको किसी भी प्रकार का दर्द हो तो आधा कप वोडका और आधा कप पानी फ्रीज करने वाले बरतन में डालकर फ्रीजर में डाल दीजिए। इस वोडकायुक्‍त बर्फ को दर्द पर लगाने से दर्द दूर हो जाता है।

8. बुखार और सिरदर्द

बुखार और सिर में दर्द होने पर भी वोडका आराम दिलाता है। सिरदर्द होने पर वोडका को पानी में डालकर साफ तौलिये को उसमें भिगोकर निचोड़ लीजिए, इस तौलिये को सिर पर रखने से सिरदर्द दूर हो जायेगा।


9. दांत दर्द होने पर

दांतों में दर्द होने पर वोडका की कुछ बूंदों को दर्द देने वाले दांत पर लगाने से दर्द दूर हो जाता है। जिस दांत में दर्द हो रहा हो उसके जबड़े और आसपास के क्षेत्र में वोडका की कुछ बूंदे डालने से तुरंत राहत मिलती है।

10. त्‍वचा पर चकत्‍ते

यदि आपकी त्‍वचा पर किसी जहरीली मक्‍खी ने डंक मार दिया है और उसके कारण त्‍वचा लाल हो गई है और दर्द हो रहा हो तो वोडका से इस दर्द के साथ-साथ इन चकत्‍तों को भी दूर किया जा सकता है। त्‍वचा की जिस जगह पर जह फैला हो उस जगह पर वोडका लगाने से आराम मिलता है।


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Tuesday, August 25, 2015

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एक छोटा सा किसान या सुपर ब्रेन


तुलछाराम जाखड़ (नागौर जिले के मेड़ता क्षेत्र के गाँव लाम्पोलाई ) का गणित का ज्ञान एक देवीय चमत्कार ही है.

आपने इन दिनों गूगल बॉय की कहानी खूब पढ़ी और देखी होगी. सारे चेनल उसे दिखा रहे हैं. लेकिन राजस्थान के नागौर जिले के मेड़ता क्षेत्र के गाँव लाम्पोलाई में रहने वाले चौथी पास किसान तुलछाराम जाखड़ का गणित ज्ञान देखकर हेरान होने के सिवा कोई चारा नहीं रहता है. आप कहिये कि 865 का दस तक पहाड़ा बोलना (मल्टीप्लाई करना) है, वे बोल देंगे. ऐसे कोई भी संख्या जो एक लाख तक है, आप बोलेंगे और तुलछाराम जी उसकी दस तक की गिनती फ्लो में बोल देंगे. आप लाखों की संख्या बोलते रहिये, वे जोड़ देंगे. आप किसी भी लंबी संख्या का वर्गमूल(स्क्वायर रूट) पूछिए, वे बता देंगे. बस आप आँखें फाड़ फाड़ कर उनकी तरफ देखते रहिये. तुलछारामजी गणित को काव्य शैली में समझाते हैं तो फिर अपना दिमाग थम जाता है. कविताओं में गणित. सचमुच भारत रूपी इस देवभूमि में ऋषियों की आत्माएं आज भी विचरण करती हैं, ऐसा लगता है.

उनके इस हुनर के बारे में अखबार में पढ़ा था, उनसे मुलाक़ात भी होती रहती है, रिश्तेदारी भी है, पर मैं उनसे तसल्ली से कभी रूबरू नहीं हो पाया था. शायद यह सब भी देवीय संयोग से होता है. आज उनके गाँव लाम्पोलाई में शाम को एक हथाई में बैठा था तो उनके गणित के ज्ञान की एक एक परत ऐसी खुलने लगी कि मुझे ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट के फलसफे और प्रमेय याद आने लगे. देवीय चमत्कार समझ में आने लगे. भगवान ने आदमी के दिमाग में क्या क्या भर रखा है, जो आजतक वैज्ञानिकों की समझ से बाहर है. आज वार्तालाप बीच में ही छोड़ना पड़ा. समय का अभाव था. उन्हें फिर आने का वादा कर आ गया.

मैंने चलते चलते जाखड़ साहब से पूछा कि आप चौथी से आगे क्यों नहीं पढ़े तो एक मार्मिक कहानी बता गये. बोले कि मेरे दादा को उनके गुरु ने बताया कि इस बच्चे के सिर पर अगर हल्की चोट भी लग गई तो यह खत्म हो जायेगा. दादा को पता था कि उन दिनों स्कूल में बच्चों की पिटाई आम बात थी. बस स्कूल छुडवा दी. भाई बहनों में वे इकलौते ही ज़िंदा बचे थे सो रिस्क लेना कोई नहीं चाहता था. दादा एक तरह से पोते की रखवाली में ही दिन बिताते थे. लेकिन दिमाग की कसरत घर पर ही चालू रही. दिमाग आज भी उसी गति से गणनाएं कर रहा है. अगर स्कूल में पढ़ाई चालू रहती तो पता नहीं भारत को कैसा वैज्ञानिक मिलता. भारत का सौभाग्य कहाँ !

कई बार स्थानीय अखबारों ने उनकी कहानी छापी है पर अभी तक वे देश दुनिया की ख़बरों में नहीं आये हैं. शायद कोई इस महानता की गहराई का अंदाज नहीं लगा पाया हो और सभी ने इसे जादू या ट्रिक टाइप स्किल समझकर बात को यहीं छोड़ दिया हो. वैसे भी इस प्रकार के गंभीर विषयों में रुचि कम ही लोगों को ही होती है.

जखाद साहब बोलते मारवाड़ी में है, पर संख्याएँ उनके लिए खेल हो गई हैं. जिस प्रकार मेरे सामने गुणा और जोड़ कर रहे थे, मेरी तो आगे सवाल करने की हिम्मत ही नहीं पड़ी. हाँ, यह जरूर पूछा कि इस ज्ञान को आगे की पीढ़ी में सरकाया है या महफिलों में ही बिखेर रहे हो तो हंस कर बोले कि उनके पोते पोती और दोहिती ने ट्रेनिंग ले ली है और विरासत को कुछ कुछ संभालने लायक बन रहे हैं. लेकिन उनके बच्चे यह विधा नहीं पकड़ पाए और गाँव में ही रम लिए.

आपको तसल्ली करनी हो तो लाम्पोलाई गाँव (राजस्थान के एकदम बीच में ) जाकर 65 वर्ष के तुलछाराम जी से जरूर मिलिएगा. इस क्षेत्र में लोग उनको कंप्यूटर के नाम से जानते हैं !

Read in English= www.shockedyou.com
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Thursday, August 13, 2015

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CHANAKYA'S VIEWS ON FEMALE | स्त्रियों पर महात्मा चाणक्य के विचार!


मनुस्मृति में नारी को जहां यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता कहा गया है, वही महाभारत में कहा गया है कि ‘‘वह कुल तभी नष्ट हो जाता है, जब स्त्रियां दुःखी रहती है।" इसलिये शांति पर्व में भी आया है कि केवल घर रहने से घर नहीं होता, वास्तविक रूप से गृहणी के रहने से उसे घर कहते हैं, गृहणी के बिना घर और वन में कोई भेद नहीं है अर्थात घर व वन समान ही हैं। इस प्रकार महात्मा चाणक्य ने भी स्त्रियों पर अनेक श्लोक लिखे हैं। इस ब्लाॅक में मैं महात्मा चाणक्य के केवल स्त्री संबंधी विचार प्रस्तुत कर रहा हूं उन सभी विचारों से मेरा सहमत होना आवश्यक नहीं हैं-
CHANAKYA'S VIEWS ON FEMALE

महात्मा चाणक्य स्त्रियों के कुछ स्वाभाविक दोष बताने का प्रयास कर रहे हैं-"झूठ, कपट, बहुत अपवित्रता, मूर्खता, कपट, क्रोध, अत्यंत लोभ, बिना विचारे किसी काम को कर बैठना, ये स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं।" ।। 2/1।।

चाणक्य कहते हैं-"जो स्त्री दूसरों के घरों में घूमती फिरे, जो वृक्ष नदी तट पर हो, जो राजा मन्त्री न रखता हो, ये सब शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।" ।। 2/15।।

चाणक्य बताते हैं कि स्त्री किस प्रकार शोभा देती है-"कोयल का मीठा स्वर ही उसकी शोभा है, कुरूप मनुष्य की विद्या ही शोभा है, तपस्वियों को क्षमा करना शोभा देता है और पातिव्रत्य धर्म स्त्री को शोभा देता है।" ।।3/9।।

सुभार्या स्त्री के निम्न लक्षण महात्मा चाणक्य बताते हैं-"वह स्त्री जिस पर पति की प्रीति हो और जो स्वयं पतिव्रता, होशियार और पवित्र है जो सदा सत्य बोलती हो, वही सुभार्या है, अर्थात दान, मान, पोषण और पालन योग्य है।" ।। 4/13।।


चाणक्य आगे बताते हैं कि-"मनुष्यों का मार्ग चलना बुढ़ापा है, घोड़ों को बांधे रखना बुढ़ापा है, स्त्रियों का अमैथुन बुढ़ापा है और वस्त्रों का धूप बुढ़ापा है अर्थात ये निर्बल हो जाते हैं।"।। 4/17।।

किस का गुरू कौन है इस संबंध में महात्मा कौटिल्य प्रकाश डालते हैं-"स्त्रियों का गुरू उनका पति है और आया हुआ अतिथि सबका गुरू है। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य का अग्नि गुरू है तथा चारों वर्णो का गुरू ब्राह्मण होता है।" ।। 5/1।।

किस के पाप को कौन भुगतता है इस संबंध में मुनि चाणक्य कहते हैं-"अपने राष्ट्र द्वारा हुये पाप को राजा, राजा से हुये पाप को राजपुरोहित और शिष्य से हुये पाप को गुरू और स्त्री द्वारा किये गये पाप को पति भोगता है।" ।। 5/10।।

कौन सी स्त्री शत्रु के समान होती है चाणक्य कहते हैं-"ऋण करने वाला पिता और व्यभिचारिणी माता शत्रु के समान है, मुर्ख पुत्र और अधिक सुन्दर स्त्री भी शत्रु के समान होते हैं।" ।। 5/11।।

चाणक्य बताते हैं कि कौन-कौन नष्ट हो जाते हैं-"सन्तोषी राजा नष्ट होता है और असन्तोषी ब्राह्मण नष्ट होते हैं, शर्मीली वेश्या नष्ट होती है और बेशर्म कुलवधू नष्ट हो जाती है।" ।।8/18।।।

चाणक्य कहते हैं कि निम्न क्या नहीें कर सकते हैं-"स्त्रियां क्या नहीं कर सकती? कवि क्या नहीं देखते हैं? शराबी क्या नहीं बक देते हैं? और कागा क्या नहीं खा लेता है? हैं।" ।। 10/4।।

उपरोक्त सब कुछ लिखने के बाद भी महात्मा चाणक्य स्त्रियों की अनेक विशेषताओं को पुरूषों से श्रेष्ठ बताते हैं-"स्त्रियों में पुरूषों से आहार (भोजन) दोगुना, लाज (शर्म) चार गुना, साहस छह गुना और काम (सेक्स) आठ गुना अधिक होता है।" 1/17।।
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Tuesday, June 16, 2015

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Beef has hurt freedom far more than any Beef-Ban

beef-ban


The pro-beef lobby has been incredibly oblivious to the devastating role that the demand for beef has played in human history.

The discussion about beef in most of the major Indian media outlets (and their colonial cousins in London and elsewhere) has been incredibly oblivious to the real questions surrounding the choice to kill animals in general and cattle in particular for human consumption. Typically, major English language news channels, magazines, and newspapers have presented the issue as nothing more than an infringement on the freedom of citizens to eat what they want.

This notion of infringement seems to have been doubly tweaked so as to please two ends of the beef-eating spectrum. On one end, celebrities and aspirational lifestyle figures have lectured us on how we natives (or they might have said “nativists”) are trampling like medieval despots on the modern, enlightened glitterati who would just rather eat whatever they feel like. On the other end, activists, academics, and politicians are screaming outrage at what they see as upper-caste Hindutva elites imposing their hegemony on the poor subaltern Indian’s cheap protein. Rich and poor, it seems, have been wronged here.

But underlying this terribly (and self-servingly) two-faced but one-sided debate is the real issue no one in the major media outlets has talked about. The real issue around beef is not choice, taste, diet, and nutrition, but simply violence. Protesting a ban on beef, after all, is not like protesting a ban on wearing yellow knickers or jumping up and down on the road. It cannot be caricatured as a ban on some frivolous or harmless sort of liberty.

Insisting on the right to eat beef (or meat, more generally too), is at its core really an insistence on the right to inflict suffering on a living, sentient being for the sake of our pleasure. I know that saying this makes many of us feel judged. But it is not something that an intelligent society, a society that has worshipped intelligence and wisdom for millennia, can skip out of at this time in history.

As I discuss in my new book Rearming Hinduism, what our elders and gurus keep telling us in simple, seemingly simplistic terms about Gau-Maata represents perhaps the last line of defence before a juggernaut of violence in history that has devoured not only the cows that the Secular-Left doesn’t care about, but also the poor, the marginal, and the silent majority of human beings they profess to care so much about.

I don’t know if the poor will be deprived of their protein because of the beef ban, but the truth is that hundreds of millions of peoples’ lives have already been destroyed in the last few centuries as a consequence of beef.

Take the following examples for Beef  Ban favor.


1) European Colonialism: The colonization of the world by Spain, Portugal, England, France and other European powers in the last five centuries was one of the most devastating forms of conquest in history for the simple reason that most of the world is still struggling to recover from it. How did it come to be? Was it the mere urge of riches in the Indies, or something more specific? We know that the quest for India and the spice trade was one of its major motivations. But why spices, was it only for their value? According to Jeremy Rifkin, the period before European expansion and colonialism was marked by a huge increase in meat and particularly beef-consumption in parts of Europe, and in the era before refrigeration, spices were the only way they could really disguise the smell and taste of rotting meat.

2) The Irish Potato Famine: We know that Ireland was destroyed by the potato famine. According to Rifkin, the potato-monoculture was precipitated by the overgrazing of lands by cattle destined to be slaughtered for beef.

3) The Native American Dispossession and Genocide: Most schoolchildren in America today are aware about the injustice done to the Native Americans by the European “settlers.” But was it only a land issue? We seldom stop to think about why, exactly, the settlers wanted so much land. The answer, once again, is beef. The early wave of conquistadors, missionaries, and settlers turned South America into a vast grazing land for their cattle. Rifkin describes how there was so much cattle walking around at one time that people used to kill and take whatever bits of meat they wanted, leaving carcasses to lie around and rot across the land. In what is now the United States, the British and US beef business had a direct interest in clearing the land of Native Americans and the native buffalo so that their own commercial cattle could be brought in. In a few short years, the “cowboys” massacred perhaps millions of these great, majestic beings, sometimes from specially scheduled trains that went out into the plains and paused wherever the great hordes of buffalo could be seen. Without their buffalo, the Native Americans too became dependent on the settlers, and lost their freedom, land, and in many cases, their lives too.

4) Slavery and Exploitation of Workers: The beef zamindars of South America pretty much brought in a system of slave and near-slave labor to support their business. Then, when the industrial revolution came to America, it was once again the beef industry that remained at the center of some of the most inhumane and exploitative working conditions humanity had witnessed (such as the meat-packing factories we read about in Upton Sinclair’s classic The Jungle). The first big industry to use assembly line techniques with all its debilitating effects on workers was apparently the meat-packing industry centered in Chicago in the early 20thcentury. We don’t realize it, but in many ways beef was to America then what the oil industry has been more recently: the force which seemingly drives everything.

5) Globalization, Fast Food and the Present: It is one of the most tragic ironies of our time that while concerned citizens in the West are desperately trying to move away from the environmentally devastating and exploitative fast food-burger culture, our idea of being good citizens in India seems to be blindly advocating for greater dependence on a truly pernicious and socially and environmentally costly form of dietary pleasure. Books like Eric Schlosser’s Fast Food Nation have shown us how the seemingly cheap burger that is consumed by so many around the world actually carries a crippling price-tag. Beef is the most energy-intensive form of meat to produce, and forests, farms, land, water are diverted just for its sake. Its impact on climate change is also said to be very worrying. And yet, here we are in India promoting the argument that somehow what has been historically one of the most politically, socially, and environmentally irresponsible choices of food is a great and noble cause.

It is my sincere hope that all those who hold the cow dear and sacred, and have resisted the callous propaganda of Macaulayite education and McDonald’s advertising, will find in these facts the conviction to refute the shallow and ignorant arguments of our day. It is important however to not ignore the concerns of the people who might be affected by a quick and sudden step like a ban, and perhaps the concerned activists and NGOs can work with them to ease them into less violent and unsafe livelihoods.

But the heart of the matter is still only this.

For several thousand years, Indian civilization held one line dear to its heart, even though it has had to concede several others. It stood stoic as people came from far and wide, from places so removed from history that they did not recognize that human beings could live without taking a single animal life for food. Today, after centuries of colonization, we have forgotten much of our own wisdom, believing in the propaganda of the less fortunate. We must therefore stop, think, and decolonize further. We must look sharply at the stories we are being told about diet, nutrition, evolution, animals, and life itself, and learn to critique them accurately and effectively.

We may not be able to dictate vast changes in heart or policy immediately, but we must learn to view things as they are, and not what a deluded imperial propaganda system has told us for several centuries now, first as pseudo-religion, and then as pseudo-science.

In the end, if your heart seems to tell you that a cow’s eyes are looking at you as a mother would at a child, or indeed as the Mother of the Universe would at all of us, remember that this is no sentimental superstition, but a deep truth the universe has preserved somehow in you. Believe it, know it, and speak it.

(this article was first published in Indiafacts.co.in)

Dr. Vamsee Krishna Juluri is a professor of media studies at the University of San Francisco and the author of Rearming Hinduism (www.rearminghinduism.com)
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Yoga is not Just an Exercise, Meaning and Definition of Yoga,

Surya Namaskar
Surya Namaskar
At the suggestion of the Prime Minister of India to United Nations, 21st June is adopted as the International Day of Yoga. Generally for people Yoga means asanas and pranayama which are done to keep the body fit. But Yoga is not just some exercise or a therapy. It is a way of life based on Ekatmata - Oneness of existence. Existence is interconnected, interrelated and interdependent as it is expression of one Chaitanya called variously as Ishwara, Paramatmanand Power etc. Today ecology and science also have realized this interconnection, interrelation and interdependence of the existence. But since last few centuries man is under the influence of ideas like individualism at the cost of social obligations and sensual enjoyment at the cost of development of inner being. The impact of this is seen in the disintegration of families, societies and depletion of nature etc.

In this context of all-round disintegration, Yoga – the integration- has become a necessity. Yoga in essence is the integration of -body-mind-intellect with the Self, individual with the family, the family with the society, the society with the nation and the nation with the whole creation.


The meaning of Yoga is Yujyate anena iti Yogah – Yoga is a process of joining. Yoga is joining or union of Atma to Paramatma. It is not like joining two pieces together. Yoga is that practice by which one realizes that everything is One. The body is but a temporary manifestation of the Self. The real Self is always there, unaffected, blissful and unchangeable. To realize this, to identify with this blissful Self is Yoga. This can be understood at intellectual level but to experience it long and continuous practice is required.

Some say that Yoga was started by Maharishi Patanjali. But Yoga is mentioned even in Vedas. Hiranyagarbha – the first manifested form of Ishwara taught Yoga to Vivasvan and he taught it to Manu and from Manu it was taught to many worthy men and women. Or in Shaiva tradition it is told that Yoga comes to us from Bhagvan Shiva. There is mention of many Yogis and Yoginis in our Puranas and Itihasas like Ramayana and Mahabharata. Maharishi Patanjali collected, compiled and edited the existing knowledge of Yoga in his time, based on his own experience and Sadhana of Yoga. Thus he gave us Yoga to be practiced in eight ways.

If our real Self is blissful then why do we not perceive it? If, everything is the expression of the One, then why don’t we always feel that Oneness? The answer is because of the continuous thoughts or the modifications of Chitta or in simple term the impurities in Chitta.

The way to remove these impurities or to stop the Vrittis is to practice eight Angas of Yoga. A tested science to realize the Oneness is Yogashastra. These are not eight steps but eight angasmeans we should practice all the eight regularly. The eight angas are

Yama – Ahimsa, Satya, Asteya, Brhamacharya, Aprigraha – Nonviolence, truth, non-stealing, brahmacharya and non-aggrandizement is practice of Yama.


Yama defines our interactions with others (Including nature) and therefore the practice ofYama is most important. Without practice of Yama, practice of other limbs of Yoga would not be fruitful. If practice of Yama is not done then one cannot progress in Yogaabhyas and one who has progressed could also fall.

Niyama – Shauch, Santosh, Tapa Swadhyaya, Ishwarranidhan – Internal and external purification, contentment, Penance, study, and surrender to God are the Niyamas.

Niyama are for the self-preparation, for self-development, and are related to oneself, one’s attitudes.

Asana – Asanas are practiced to make our postures firm.

Pranayam – Controlling the breath is the easiest way of getting control of the Prana. InPranayama the speed of breathing is controlled.

Pratyahara – Changing outward tendency of senses and turning them inwards is Pratyaahar.

Dharana – Dharana is stabilizing/holding the mind to some particular place either of objects/or some part of the body for a long period.

Dhyana - An unbroken flow of one thought -one Bhavana on the place of Dharana is Dhyana.

Samadhi – When even the thought that ‘I am doing this Dhyana on such and such thing’ is gone, then it is called as Samadhi.

To summarise: the practice of Yoga is two-fold antaranga and bahiranga. One is to realize the Divine Self. Second is to employ the body-mind complex in the service of the manifested Self that is family, society, nation and the whole creation. Both are essential as they strengthen each other. This two-fold practice of Yoga is required to really help the humanity to progress further spiritually. We being the custodians of this great way of life we would have to first practice it so as to guide the whole world.

(the author is Vice President at the Swami Vivekananda Centre at Kanyakumari. She has been dedicated worker and Yoga practitioner since the last 38 years)
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Sunday, June 7, 2015

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Complete Details About Pradhan Mantri Suraksha Bima Yojana

Pradhan Mantri Suraksha Bima Yojana
Pradhan Mantri Suraksha Bima Yojana

Yesterday my father called me on my mobile phone and told me about the Pradhan Mantri Suraksha Bima Yojana. Believe me I had no idea about the scheme started by the government.

He told me briefly about the scheme and I was really impressed. So I started researching on the Internet about this program. I found the program is really good and it must be shared by everyone in the country.

So I wrote this article.
 

What is Pradhan Mantri Suraksha Bima Yojana?

Pradhan Mantri Suraksha Bima Yojana is a universal social security system that will cover every young Indian for his or her illness, accidents and penury in old age.

This is not the first scheme by the government but the successor of Pradhan Mantri Jan Dhan Yojana.

This particular scheme has special benefits that no other schemes previously had. Let us see this scheme in details.
 

Who All Can Apply for this Scheme?

 You must be an Indian citizen in age group of 18 years to 70 years with a bank account.

If you have multiple savings accounts held by an individual in one or different banks then the person is allowed to join through one savings account only.

You need to submit the form to the bank every year before the 1st of June in order to join the scheme.


How Much and Where You Have to Pay for the Yojana?

 Now this is what makes Pradhan Mantri Suraksha Bima Yojana great. You have to pay a premium of only Rs 12 per annum, yes Rs 12 in a year. That would be Re 1/- in just one month.

There is only one mode through which you need to pay your premium and that is the premium amount will be auto debited by the bank you have an account in.
 

What is the Period of the Policy?



The coverage would be for one year and it would start from June 1, 2015 to May 31, 2016, you have to join or pay by auto debit from your savings bank account by May 31, 2015 and expandable to August 31, 2015.

However saving account holder joining after May 31, 2015, or before August 31, 2015 the plan end on May 31, 2016.
 

What is the Risk Coverage of the Scheme?



Now you need to know what all is this scheme going to cover? For the full accident and full disability you will be paid Rs 2 Lakhs. Here full disability would mean disability of both eyes, both hands, both legs or even one limb and one eye.

And in case of partial disability you will get half of the amount that is Rs 1 Lacs. Partial disability would mean one eye or one limb.

Total amount that you can claim is Rs 2 Lac only.

What is not Covered by this Plan?

 You also need to know what is strictly not covered by this scheme.
Some of the major exclusions are intentional self injury, suicide or attempted suicide while you are under the influence of any kind of intoxication like liquor or drugs.
You will not be paid the amount if you are at violation of any of conditions of term and conditions. So read the master policy and its every word.

What are the Core Benefits of this Plan?

Some of the salient features of this plan are
 
  1. You get full amount of Rs 2 Lac if there is death or loss of life.
  2. You also get same amount of Rs 2 Lacs if there is irrecoverable loss of both eyes and both hands or both feet and even loss of one eye, foot or hand.
  3. You get half of the amount Rs 1 Lac if there is loss of sight of one eye or one hand or foot.
  4. Moreover the premium that you pay is Re 1 for one month.
  5. The premium paid will be tax free under section 80C.

Who will Administer or Implement this Plan?



The entire scheme will be administered by all public sector general insurance companies and other insurers who are willing to join the plan and tie up with the banks for this plan.

So here there are two parties one is the bank and other is public sector insurance companies like Life Insurance Corporation.

What are the Role of Banks and Insurance Companies in this Scheme?



Banks are the one who will hold the master policy. They are the one who will settle the claim with the insurance company.

Moreover you will get the enrollment form, auto debt authorization, and consent cum declaration form from the bank you are applying.

Insurance companies are going to administer your plan in association with the bank.

List of Banks and Insurance Companies Offering Pradhan Mantri Suraksha Bima Yojana

There is a tie up of Insurance companies with every bank. Here is the top 10 list.
Allahabad Bank with Universal Sompo General Insurance Company


  1. Bhartiya Mahila Bank with United India Assurance
  2. Canara Bank with United India Assurance
  3. Central Bank of India with New India Assurance Company Ltd
  4. Corporation Bank with New India Assurance Company Ltd
  5. Dena Bank with United India Assurance
  6. Federal Bank Ltd with New India Assurance Company Ltd
  7. HDFC Bank Ltd with LIC
  8. ICICI Bank Ltd with ICICI Lombard General Insurance Company Ltd
  9. IDBI Bank Ltd with Bajaj Alliance

Pradhan Mantri Jeevan Jyoti Bima Yojana

This plan is the Scheme 2 for life insurance cover. We have compared these two programs in next paragraph but Pradhan Mantri Suraksha Bima Yojana is better than this particular program.

However this scheme is for 18 years to 50 years old, premium is Rs 330 per annum and risk coverage is same Rs 2 Lakhs.

A Comparison Between Pradhan Mantri Suraksha Bima Yojana and Pradhan Mantri Jeevan Jyoti Bima Yojana

Now let us see a brief comparison between these two schemes so that you can choose any one of them.

DifferencePM Suraksha Bima YojanaPM Jeevan Jyoti Bima Yojana
Eligibility18 years to 70 Years18 Years to 50 Years
PremiumRs 12 Per AnnumRs 330 Per Annum
Age of Cover StoppageAt 70 YearsAt 50 Years
Death Benefit(Natural Death)NILRs 2 Lacs
Disability of One Eye or FootRs 2 LacsNIL
Similarities

Sum AssuredRs 2 LacsRs 2 Lacs
Maturity BenefitsNILNIL
Maximum CoverRs 2 LacsRs 2 Lacs
Risk Period1st June to 31st May1st June to 31st May


First we look out for the differences and then similarities between these two. You can make out the Pradhan Mantri Suraksha Bima Yojana is better choice for accident related issues.

 

Download the Form of Pradhan Mantri Suraksha Bima Yojana

You can download the form in different languages 
 

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