Thursday, August 13, 2015

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CHANAKYA'S VIEWS ON FEMALE | स्त्रियों पर महात्मा चाणक्य के विचार!


मनुस्मृति में नारी को जहां यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता कहा गया है, वही महाभारत में कहा गया है कि ‘‘वह कुल तभी नष्ट हो जाता है, जब स्त्रियां दुःखी रहती है।" इसलिये शांति पर्व में भी आया है कि केवल घर रहने से घर नहीं होता, वास्तविक रूप से गृहणी के रहने से उसे घर कहते हैं, गृहणी के बिना घर और वन में कोई भेद नहीं है अर्थात घर व वन समान ही हैं। इस प्रकार महात्मा चाणक्य ने भी स्त्रियों पर अनेक श्लोक लिखे हैं। इस ब्लाॅक में मैं महात्मा चाणक्य के केवल स्त्री संबंधी विचार प्रस्तुत कर रहा हूं उन सभी विचारों से मेरा सहमत होना आवश्यक नहीं हैं-
CHANAKYA'S VIEWS ON FEMALE

महात्मा चाणक्य स्त्रियों के कुछ स्वाभाविक दोष बताने का प्रयास कर रहे हैं-"झूठ, कपट, बहुत अपवित्रता, मूर्खता, कपट, क्रोध, अत्यंत लोभ, बिना विचारे किसी काम को कर बैठना, ये स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं।" ।। 2/1।।

चाणक्य कहते हैं-"जो स्त्री दूसरों के घरों में घूमती फिरे, जो वृक्ष नदी तट पर हो, जो राजा मन्त्री न रखता हो, ये सब शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।" ।। 2/15।।

चाणक्य बताते हैं कि स्त्री किस प्रकार शोभा देती है-"कोयल का मीठा स्वर ही उसकी शोभा है, कुरूप मनुष्य की विद्या ही शोभा है, तपस्वियों को क्षमा करना शोभा देता है और पातिव्रत्य धर्म स्त्री को शोभा देता है।" ।।3/9।।

सुभार्या स्त्री के निम्न लक्षण महात्मा चाणक्य बताते हैं-"वह स्त्री जिस पर पति की प्रीति हो और जो स्वयं पतिव्रता, होशियार और पवित्र है जो सदा सत्य बोलती हो, वही सुभार्या है, अर्थात दान, मान, पोषण और पालन योग्य है।" ।। 4/13।।


चाणक्य आगे बताते हैं कि-"मनुष्यों का मार्ग चलना बुढ़ापा है, घोड़ों को बांधे रखना बुढ़ापा है, स्त्रियों का अमैथुन बुढ़ापा है और वस्त्रों का धूप बुढ़ापा है अर्थात ये निर्बल हो जाते हैं।"।। 4/17।।

किस का गुरू कौन है इस संबंध में महात्मा कौटिल्य प्रकाश डालते हैं-"स्त्रियों का गुरू उनका पति है और आया हुआ अतिथि सबका गुरू है। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य का अग्नि गुरू है तथा चारों वर्णो का गुरू ब्राह्मण होता है।" ।। 5/1।।

किस के पाप को कौन भुगतता है इस संबंध में मुनि चाणक्य कहते हैं-"अपने राष्ट्र द्वारा हुये पाप को राजा, राजा से हुये पाप को राजपुरोहित और शिष्य से हुये पाप को गुरू और स्त्री द्वारा किये गये पाप को पति भोगता है।" ।। 5/10।।

कौन सी स्त्री शत्रु के समान होती है चाणक्य कहते हैं-"ऋण करने वाला पिता और व्यभिचारिणी माता शत्रु के समान है, मुर्ख पुत्र और अधिक सुन्दर स्त्री भी शत्रु के समान होते हैं।" ।। 5/11।।

चाणक्य बताते हैं कि कौन-कौन नष्ट हो जाते हैं-"सन्तोषी राजा नष्ट होता है और असन्तोषी ब्राह्मण नष्ट होते हैं, शर्मीली वेश्या नष्ट होती है और बेशर्म कुलवधू नष्ट हो जाती है।" ।।8/18।।।

चाणक्य कहते हैं कि निम्न क्या नहीें कर सकते हैं-"स्त्रियां क्या नहीं कर सकती? कवि क्या नहीं देखते हैं? शराबी क्या नहीं बक देते हैं? और कागा क्या नहीं खा लेता है? हैं।" ।। 10/4।।

उपरोक्त सब कुछ लिखने के बाद भी महात्मा चाणक्य स्त्रियों की अनेक विशेषताओं को पुरूषों से श्रेष्ठ बताते हैं-"स्त्रियों में पुरूषों से आहार (भोजन) दोगुना, लाज (शर्म) चार गुना, साहस छह गुना और काम (सेक्स) आठ गुना अधिक होता है।" 1/17।।

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